बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

Ayurveda Medicine

आयुर्वेदिक दवा आयुर्वेद के मूल सिध्धन्तो पर आधारित है और उसी अनुसार उनका प्रयोग किया जाता है जिससे रोगी को अवश्य और शत प्रतिशत आराम मिलता है।
अर्शोघनी वटी.......
यह वटी वातज यानि की बिना खून वाली बवासीर और खूनी बवासीर को ठीक करने में बहुत कारगर है।
इसकी 2-2 गोली चार बार ठंडे पानी या ताज़ा पानी से लें।
आरोग्यवर्धिनी वटी.........
आरोग्यवर्धिनी वटी आयुर्वेद विज्ञान की श्रेष्ठ गुटिका है। जैसा इसका नाम वैसा ही इसका काम है।
ये गोली हैपेटाइटिस, लीवर से संबन्धित सभी तरह के रोग, त्वचा के रोग, एलर्जी, काले सफ़ेद धब्बे, खाज, खुजली, एसिडिटी, आमाश्य और आंत से संबन्धित रोग, ह्रदय रोग, गैस बनना, कोई भी शारीरिक तकलीफ हो उसमे इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसे वैद्य समाज के लोग बहुत प्रयोग करते हैं।
इसकी एक गोली सुबह और एक गोली शाम को पानी, शहद या दूध से लेनी चाहिए। सुबह या दिन मे एक गोली खाने से भी काम चल जाता है। ऊपर बताए गए रोगों मे इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसे सभी दवा बनाने वाली कंपनीयां बनाती हैं इसलिए सर्व सुलभ भी है। जिन्हे कोई बीमारी न हो वो भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसे खाते रहने से व्यक्ति का आरोग्य बना रहता है।
अग्नितुन्डी वटी..........
गुण :- अग्नि के मन्द होने से पैदा सभी रोगों में देने से पूरा लाभ होता है। यह वटी अग्नि दीपक, वातानुलोमक,पाचक और मृदु रेचक है ।
मात्रा:- 1 से 2 गोली भोजन के बाद, हल्के गरम पानी के साथ खाना चाहिये ।
अज्मोदादि वटी........
गुण :- आमवात, गृध्रसी, तूनी, प्रतितूनी, विश्वाची, शोथ, सन्धि शोथ, सन्धि शूल, अस्थि शूल, कटि शूल, गुदा शूल, जन्घा शूल, पृष्ट शूल, वस्ति शूल, विशूचिका और ह्रुदय रोग दूर होते है ।
मात्रा :- 3 से 6 गॊली , गरम पानी से, दिन में दो तीन बार ।
अभयादि बटी.......
गुण :- जीर्ण ज्वर, प्लीहा, पांडु , काम्ला, कुम्भ कामला, रक्त पित्त, अम्ल पित्त, आठ प्रकार के उदर रोग, सब प्रकार के अजीर्ण, अषठीला, आध्यमान, विबन्ध, गुल्म आदि रोग नष्ट हो जाते है ।
मात्रा:- 2 गोली, हरड़ का चूर्ण मिला हुआ चावल का धोवन के साथ अथवा गरम जल के साथ लें।
अमृतादि गुग्गुल वटी.......
गुण :- वात रक्त, कुष्ठ, अर्श, भगन्दर, प्रमेह, आम्वात, एवम आढ्यवात में उपयोगी है ।
मात्रा:- 1 से 3 ग्राम, रास्नादि काढा या गरम जल के साथ, दिन में दो या तीन बार लें।
आमलक्यादि वटिका.......
गुण:- इस वटी को उस समय प्रयोग करते हैं जब बुखार के बीच में बहुत प्य़ास और मुख सूखने लगता है और बार बार अधिक पानी पीने के बाद भी प्यास नहीं बुझती है ।
आमवातारि वटिका.......
गुण :- यह वटी बहुत से रोगों की दशाओं में प्रयोग की जाती है । आमवात, गुल्म, शूल, उदर रोग, यक्रत रोग,प्लीहा रोग, अष्ठीला रोग, आनाह,आन्त्र बृध्धी, अर्श, भगन्दर, ग्रन्थि शूल, शिर:शूल, गृध्रसी, पान्डु, कामला,हलीमक, शोथ, अम्लपित्त, वात रोग, अरुचि, श्लीपद, अर्बुद, गलगन्ड, गन्डमाला, विद्रधी, पाषाण गर्धभ, कुष्ठ और कृमि रोग नष्ट होते हैं ।
मात्रा :- 1 गोली , त्रिफला के काढे के साथ दिन में दो बार। एक या दो गोली मुख में रखकर चूसना भी लाभप्रद है।
इन्दु वटी......
सभी प्रकार के कान के रोग यानी कान तथा कान से सम्बन्धित सभी रोगों के अलावा मधुमेह आदि आदि बीमारियों की अवस्थाओं में उपयोग की जाती है । इसकी एक गोली आवले के रस के साथ सुबह शाम खाना चाहिये
इन्दुकला वटी.......
गुण :- यह वटिका मसूरिका, रोमान्तिका, विस्फोट ज्वर, लोहित ज्वर, सर्व व्रण रोग और कासादि रोगों को दूर करती है ।
इसे एक गोली रोजाना तुलसी पत्र के रस के साथ दिन में दो समय सेवन करना चाहिये
ऊपर बतायी गयी आयुर्वेदिक दवाये एक वयस्क के लिये है। बच्चो को आधी दवा और बहुत छोटे बच्चो को चौथायी मात्रा देनी चाहिये।