रविवार, 6 दिसंबर 2015

वाजीकारक चूर्ण

नारसिंह चूर्णम
शतावर का चूर्ण एक सेर, दक्षिणी गोखरू का चूर्ण एक सेर, बराही कंद का चूर्ण एक सेर, गिलोय सत्व सवा सेर, शुद्ध भिलावे दो सेर, चित्रक की छाल ढाई पाव, शुद्ध तिल एक सेर, त्रिकुटा आधा सेर, मिश्री साढ़े चार सेर, शहद सवा दो सेर, गाय का घी एक सेर- दो छटांक लें ! इन सभी को कूट छान कर मिला लें और चिकने शुद्ध पात्र में रख दें ! इसमें से दो तोला प्रतिदिन प्रातःकाल खाएं और उचित मात्रा में पौष्टिक भोजन करें ! इसके एक माह तक लगातार सेवन से बुढापे के कारण होने वाले सभी रोग दूर हो जाते हैं ! देह में गुठलियां बनना, बाल सफ़ेद होना अथवा गंजापन होना, प्रमेह, पांडु (पीलिया अथवा रक्त की कमी), पीनस, कोढ़ सहित अठारह प्रकार के चर्म (त्वचा) रोग, आठ तरह के उदार रोग, भगंदर, मूत्रकृच्छ, हलीमक, क्षयरोग, महाश्वास, पांच प्रकार की खांसी, 80 प्रकार के वायु रोग, 40 प्रकार के पित्त रोग, काफ के 20 तरह के रोग, मिश्रित और सन्निपात के रोग, सभी तरह के बबासीर जैसे रोगों को यह चूर्ण ठीक उसी प्रकार नष्ट कर देता है जिस तरह इंद्र का वज्र वृक्षों को नष्ट करता है ! इसके सेवन से वीर्य अत्यंत बढ़ जाता है, जिससे मनुष्य स्त्री से नित्य दस बार गमन करने योग्य हो जाता है ! इसके प्रभाव से मनुष्य शेर के समान शूरवीर पुत्र उत्पन्न करने में सक्षम हो जाता है ! अनेक गुणों वाला यह नारसिंह चूर्ण मनुष्य के समस्त रोगों को दूर करने की सामर्थ्य वाली दिव्य औषधि है !
मूसली चूर्णम
मूसली स्याह और सफ़ेद, विदारी कंद, गिलोय का सत्व, कौंच के बीज, गोखरू, शेंवला की मूसली इन सभी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और फिर चूर्ण के बराबर मिश्री मिला कर रख लें ! प्रतिदिन डेढ़ या दो तोला खाकर ऊपर से मिश्री और घी मिला कर दूध पिएं ! इससे वीर्य शुद्ध, पुष्ट होता है और मनुष्य की काम शक्ति बढ़ जाती है !
वाराहीकन्दचूर्णम
वाराहीकन्द (विदारीकन्द) और भांगरे के चूर्ण को 16-16 पल लेकर घी में थोड़ा भून लें ! फिर इसमें बराबर मात्रा मिश्री मिला कर रख लें ! प्रतिदिन एक तोला चूर्ण खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से काम-शक्ति बढ़ जाती है !
एक अन्य प्रयोग –
दालचीनी, तेजपात, नागकेशर, मुलहठी-इन सभी को चार-चार तोला लेकर बराबर मात्रा की चीनी मिलाकर रख लें ! इस चूर्ण को मिश्री मिले चूर्ण के साथ खाएं अथवा ऊपर दिए गए वाराहीकन्द के चूर्ण के साथ मिला कर खाएं और ऊपर से दूध पिएं ! यह काम-शक्ति को बढाने का श्रेष्ठ उपाय है !
अन्यच्चूर्णम
कौंच के बीज और तालमखाना को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और इसमें समान मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें ! इसे एक से दो तोला प्रतिदिन धारोष्ण (ताज़ा निकाला गया बिना गर्म किए) दूध के साथ सेवन करें ! यह प्रयोग नित्य करने वाले मनुष्य का वीर्य कभी क्षीण नहीं होता !
मधुयष्टीचूर्णम
मुलहठी के एक तोला चूर्ण में छः मासा शुद्ध देशी घी और एक तोला शहद मिला कर चाट लें ! इसके बाद इच्छा के अनुसार मिश्री मिला गर्म दूध पिएं ! यह प्रयोग नित्य करने वाला मनुष्य सदैव वीर्य के वेग से युक्त रहता है अर्थात उसकी कामेच्छा कभी क्षीण नहीं होती !
आमलकी चूर्णम
नई फसल के आंवलों को सुखा कर चूर्ण बना लें । इसे आंवलों के रस की इक्कीस भावना देकर रख लें और इसमें से डेढ़ से दो तोला मिश्री, शहद और घी मिला कर खाएं। फिर ऊपर से गर्म दूध पी लें। यह प्रयोग नित्य करने वाला अस्सी वर्ष का बूढ़ा भी सम्भोग में जवान की तरह सक्षम हो जाता है ।
विदारीकन्द चूर्णम
विदारीकन्द के चूर्ण को विदारीकन्द के रस की इक्कीस बार भावना देकर सुखा लें और साफ़ बर्तन में भर कर रख लें। इसमें से एक तोला चूर्ण लेकर एक तोला घी और दो तोला शहद मिलाकर खाएं और ऊपर से मिश्री मिला गर्म दूध पीयें। यह प्रयोग प्रतिदिन करने वाला अनेक स्त्रियों से इच्छा के अनुसार सहवास के योग्य हो जाता है।
शतावर्यादि चूर्णम
शतावर, खरैटी, विदारीकन्द, गोखरू, आंवला समान मात्रा में लेकर इन सबका एक साथ अथवा अलग-अलग चूर्ण बना कर रख लें। इनमें घी, शहद और मिश्री मिला कर खाएं ! यह अनुपम बाजीकरण प्रयोग है !
आचार्यों ने इन सब चूर्णों के मिश्रण और सभी के अलग-अलग कुल छह प्रयोग बताए हैं। यह छहों प्रयोग कामदेव से मदांध और अति सम्भोग के आदी मनुष्य के वीर्य को असीमित रूप से बढाने वाले हैं ! अब आगे इन सबके अलग-अलग रूप प्रस्तुत किए जाएंगे।
गोखरू चूर्णम
गोखरू का पांच टंक चूर्ण सात टंक शहद में मिला कर चाट लें और इसके बाद बकरी का गर्म किया दूध मिश्री मिला कर पी लें। यह प्रयोग करने से हस्त मैथुन आदि से उत्पन्न हुई नपुंसकता कुछ ही दिनों में दूर हो जाती है।
मूसल्यादि चूर्णम
काली मूसली, तालमखाना और गोखरू क्रम से एक, दो और तीन भाग (यथा काली मूसली तीन तोला, तालमखाना छः तोला और गोखरू नौ तोला) लेकर इनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को सुबह मिश्री मिले गर्म दूध के साथ छह माशा खाएं। यह प्रयोग इक्कीस दिन करने वाला सौ वर्ष का बूढा व्यक्ति भी स्त्री से नौजवान की तरह संसर्ग में सक्षम हो जाता है।
अन्य शतावर्यादि चूर्णम
शतावर, गोखरू, असगंध, पुनर्नवा, खरैटी, मूसली – सभी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह दो तोला चूर्ण प्रतिदिन घी और मिश्री मिलाकर गर्म दूध के साथ सेवन करने वाला क्षीण मनुष्य भी मतवाले हाथी के समान बलशाली और पुरुषार्थवान हो जाता है।
अश्वगंधादि चूर्णम
असगंध नागौरी और विधारा 40-40 तोला लेकर बारीक चूर्ण बना लें। फिर इसमें बराबर मात्रा की मिश्री मिला कर रख लें। इसमें से प्रतिदिन दो तोला चूर्ण गर्म अथवा धारोष्ण दूध के साथ सेवन करें, तो धातु पुष्ट होकर मनुष्य स्त्री से रमण में कभी न थकने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।
करवीरादिचूर्णम
कनेर की जड़ का चूर्ण एक तोला, नए सेमल की जड़ पांच तोला, कौंच के बीज की गिरी सात तोला, इन सभी को लेकर कपड़छान कर लें और बराबर मात्रा की मिश्री मिला कर घी और मिश्री मिले दूध के साथ प्रतिदिन छह मासे सेवन करें, तो मनुष्य का वीर्य पुष्ट होकर अनेक स्त्रियों का मान भंग करने योग्य हो जाता है।
कामदेवचूर्णम
गोखरू 1 पल, कौंच के बीज 2 पल, गंगनेर के बीज 1 पल, शतावर 1 पल, विदारीकन्द 2 पल, असगंध 3 पल तथा अडूसा, गिलोय, लाल चन्दन, त्रिसुगंध (दालचीनी, इलायची, तेजपात) पीपल, आंवला, लौंग, नागकेशर-इन सभी को एक-एक तोला लें। खरटी और सेमल की मूसली 21-21 तोला लें। कुशा की जड़, काश की जड़, सरपते की जड़- प्रत्येक सात तोला लें। इन सभी को मिला कर चूर्ण बना लें और फिर चूर्ण की बराबर मात्रा की खांड मिला कर रख लें। इस चूर्ण को नित्य एक-दो तोला (बलाबल के अनुसार) दूध के साथ ग्रहण करें, तो दुष्टवीर्य, अल्पवीर्य, मूत्रकृच्छ आदि वीर्य एवं मूत्र से सम्बंधित सभी रोग दूर हो जाते हैं। भगवान् धन्वन्तरि का कहा हुआ यह निदान वीर्य की शक्ति को इस तरह बढ़ा देता है कि मनुष्य दस स्त्रियों के साथ घोड़े के समान रमण करने में सक्षम हो जाता है।
मानसोल्लास चूर्णम
तज, पीपल, लौंग, छोटी इलायची, सफ़ेद चन्दन, आंवला प्रत्येक को एक पल (4 तोला), लौह भस्म डेढ़ पल, शुद्ध भांग 2 पल, भीमसेनी कपूर और कस्तूरी दस-दस माशे लेकर सभी का चूर्ण बना लें। चूर्ण के बराबर मिश्री मिला कर रख लें और इस चूर्ण को प्रतिदिन 6 माशे शुद्ध दूध के साथ ग्रहण करें। यह प्रयोग जठराग्नि को बढाने के साथ काम शक्ति और कामेच्छा दोनों को तीव्र करता है।
बृहद्वाराहीकंद चूर्णम
बाराहीकंद, सिंघाड़े, बिदारीकंद – इन सभी का चूर्ण चार-चार तोले लेकर शुद्ध घी में भून लें। अब इसमें दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेशर, लवंग, पीपल, सौंठ, वंशलोचन (सभी दो-दो तोला) को चूर्ण कर मिला लें। अब सबके बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर चिकने बर्तन में रख लें। इसमें से नित्य दो तोला चूर्ण खाकर भैंस का दूध मिश्री मिलाकर पीयें। इस चूर्ण का सेवन इस प्रकार नित्य रात्रिकाल में करने वाले की सभी प्रकार की नपुंसकता दूर हो जाती है और स्तम्भन शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है।
मदनप्रकाश चूर्णम
तालमखाने, मूसली, बिदारीकंद, सौंठ, असगंध, कौंच के बीज, सेमल के फूल, खरैटी, शतावर, मोचरस, गोखरू, जायफल, भुनी उड़द की दाल, भांग, वंशलोचन – इन सभी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें चूर्ण के बराबर मिश्री दाल कर अच्छी तरह मिला लें। इस चूर्ण को नित्य दो तोला खाकर ऊपर से दूध पीने वाले का वीर्य सम्पूर्ण दोषों से मुक्त हो जाता है, उसमें शुक्राणुओं की संख्या बढ़ जाती है तथा प्रमेह नष्ट हो जाता है।
अश्वगंधा चूर्णम
असगंध और काले तिल बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें। इस चूर्ण को शहद और शुद्ध घी में मिला कर नित्य दो तोला खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से वीर्य की वृद्धि होती है और सभी प्रकार की नपुंसकता दूर हो जाती है।
माष चूर्णम
शुद्ध उड़दों के बारह तोला चूर्ण को शुद्ध घी में थोड़ा भून लें। ठंडा होने पर इसमें बराबर मात्रा की मिश्री मिला लें। इस चूर्ण में से नित्य दो तोला थोड़ा घी और शहद मिलाकर सेवन करने और ऊपर से गर्म दूध पीने से बल और वीर्य की वृद्धि होती है। साथ ही, शरीर में गुठली पड़ना और बाल सफ़ेद होना भी रुक जाता है।